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ग़ज़ल
मुहम्मद राशिद अतहर
नज़्म
मोहब्बत की एक नज़्म
मिरी ज़िंदगी में बस इक किताब है इक चराग़ है
एक ख़्वाब है और तुम हो
इफ़्तिख़ार आरिफ़
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ग़ज़ल
जो ख़याल थे न क़यास थे वही लोग मुझ से बिछड़ गए
जो मोहब्बतों की असास थे वही लोग मुझ से बिछड़ गए
ऐतबार साजिद
नज़्म
सुब्ह-ए-आज़ादी (अगस्त-47)
ये दाग़ दाग़ उजाला ये शब-गज़ीदा सहर
वो इंतिज़ार था जिस का ये वो सहर तो नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
मुझे रंग दे न सुरूर दे मिरे दिल में ख़ुद को उतार दे
मिरे लफ़्ज़ सारे महक उठें मुझे ऐसी कोई बहार दे